"आमिष" - एक अंतहीन कसक ## (फिल्म समीक्षा )
ग्रीक माइथोलोजी में हमें मुख्यतः आठ प्रकार के प्रेम का वर्णन देखने को मिलता है।इरोज ( eros):यौन जनित इच्छाएं और प्रेम ,फिला( philla):अत्यधिक मित्रता, लूडस ( ludus):जहां प्रेम महज एक खेल है आप इसे फ्लर्टिंग भी कह सकते हैं, अगेप ( agape) :विशुद्ध प्रेम जिसमें त्याग होता है,जैसे ईश्वर के प्रति प्रेम, प्रैग्मा(pragma): प्रेम का उत्कृष्ट रूप जो सतत रूप से चलने वाला प्रेम है, जिसमें व्यक्ति निस्वार्थ भाव से प्रेम करता, फिलौसिया(philautia): स्वप्रेम, स्टॉर्ज( storge): पारिवारिक प्रेम और मेनिया ( mania): जिसे आप आब्सेसिव लव( obsessive love) कहते हैं ।मेनिया एक प्रकार की मनोवृत्ति है या कहिए ऐसी मन:स्थिति जिसमें केवल एक व्यक्ति या वस्तु के विषय में ही सोचा जा सके।
असमिया फिल्म "आमिष" इसी विषय को लेकर बनाई गई है। प्रेम के विभिन्न रूपों को दर्शाते हुए अंत में आप स्वयं निर्णय की स्थिति में पहुंचते ही आखिर यह क्या था। अगर आप प्रेम के विभिन्न प्रकारों की जानकारी रखते हैं तो इसे आप और अच्छी तरह समझ पाएंगे। निर्देशक भास्कर हजारीका की निर्देशित फिल्म आपको कतिपय सवालों के संग छोड़ती है। अनुराग कश्यप का यह कहना कि 'भारतीय सिनेमा के इतिहास में ऐसी फिल्म नहीं बनी थी' उचित ही है। कुछ चीजें अश्रुतपूर्व, अभूतपूर्व और अकल्पनीय हो सकती हैं, यह इस फिल्म को देखकर आप समझ सकते।
पी एच डी शोधकर्ता सुमोन(अर्घदीप बरूहा)की मुलाकात जब बच्चों के डॉक्टर निर्मली(लीमा दास) से होती तो उनको एक कड़ी आपस में जोड़ती है और वह है आमिष अर्थात मांस।
मांसाहार के प्रेमी दोनों आपस में उसी से संबंधित बातें करते दिखाई देते हैं। शुरुआत में फिल्म लगता है सिर्फ मांस प्रेमियों के लिए ही बनाई गई है और जैसे-जैसे बकरी, मुर्गी, बिल्ली, कुत्ते, चमगादड़ से लेकर विभिन्न प्रकार के कीड़े- मकोड़े तक का मांस बनाया परोसा और प्रेम पूर्वक खाया खिलाया जाता है देखकर आपको उकताहट सी होने लगेगी और आप शायद फिल्म के आधे में ही विदा ले लें। पर यकीन मानिए यहीं आप गलत कर बैठेंगे। असली शुरुआत तो यहीं से होती है। आगे की फिल्म शायद आपकी परिकल्पना से परे हो।दाद देनी पड़ेगी निर्देशन और पटकथा को जिन्होंने इस हद तक अपनी सोच का विस्तार किया है। यह मामूली नहीं है।
निर्मली एक विवाहिता है।उसका पति डॉक्टर है जो उसे बेइंतहा प्यार करता है।एक बेटा भी है। वह अपने काम, अपने परिवार के प्रति पूर्णतया समर्पित स्त्री है। लेकिन अगर भूख पर गौर करें तो शारीरिक और मानसिक भूख से परे एक और भूख होती है और वह है आत्मा की भूख।जिस भूख के आगे हम किस हद तक विवश हो सकते हैं सोचा भी नहीं जा सकता। उस स्थिति में हम सही गलत का निर्णय करने की दशा में भी खुद को नहीं पाते हैं ।
मांसप्रेम सुमोन और निर्मली को एक दूसरे के करीब लाता है और यह मित्रता एक ऐसा संसार रचती है जिसकी परिकल्पना आप बिना फिल्म देखे नहीं समझ सकते। यह फिल्म कई सवाल अपने पीछे छोड़ जाती है मसलन:
क्या एक दूसरे को छुए बिना ही एक दूसरे में पूर्णतया समाहित हुआ जा सकता है?
मर्यादित और अमर्यादित के बीच की सीमा रेखा किस प्रकार तय की जा सकती?
इंसान की भूख उसे किस हद तक ले जा सकती?
"आमिष" 2019 में रिलीज हुई थी। फिल्म देखने के बाद अपनी मन:स्थिति में आपको स्वतः परिवर्तन होते दिखाई पड़ेगा। शायद एक...... "कसक"
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