हर एक असमिये का सिर गर्व से ऊँचा कर देने जैसी है: Manoj Pandey

एक प्रादेशिक भाषा में बनी फ़िल्म भी लीक से इतनी हटकर हो सकती है — इसकी उम्मीद भारतीय फ़िल्म जगत में कम ही होती है और ऐसा होना बहुत दुर्लभ भी है। असम के युवा लेखक-निर्देशक भास्कर हजारिका की फ़िल्म ‘आमिस’ सही मायनों में नेशनल फ़िल्म-डिस्कोर्स के पटल पर हर एक असमिये का सिर गर्व से ऊँचा कर देने जैसी है।
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‘आमिस’ मूलतः असमिया भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है: माँसाहारी. फ़िल्म का शीर्षक यही क्यों है — इसका फ़िल्म की कहानी से सीधा संबंध है। यह भेद फ़िल्म के दूसरे आधे हिस्से में प्रवेश करते ही खुल जाता है।
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यह फ़िल्म खाने-पीने के शौकीन दो ऐसे लोगों की कहानी है, जो एक दूसरे से अपरिचित होने के बाद भी माँसाहार के मामले में मिलती-जुलती पसंद के कारण परस्पर खिंचे चले जाते हैं। निर्मली (लीमा दास अभिनीत) और सुमन (अर्घदीप बरुआ), दोनों को खाने में नए-नए प्रयोग करने की आदत है। दोनों को इस समानता का बोध होता है और वे मिलते-मिलते एक-दूसरे के प्रति लगाव महसूस करने लगते हैं।
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निर्मली अधेड़-उम्र की एक विवाहिता है और पेशे से एक डॉक्टर। सुमन एक युवा रिसर्च-स्कॉलर है और वह पूर्वोत्तर-भारत में खाये जाने वाले अलग-अलग तरह के माँसाहारी व्यंजनों पर शोध कर रहा है। सुमन को नए-नए माँसाहारी व्यंजन पकाने का शौक है। पति के अक्सर बाहर रहने के कारण निर्मली की ज़िंदगी में अकेलापन है, जो उसे सुमन में भरता हुआ दिखता है। हालाँकि दोनों को अपनी मर्यादाओं का बख़ूबी आभास है और फ़िल्म में एक सीन भी ऐसा नहीं है, जहाँ उन्होनें सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ने की कोशिश की हो।
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निर्मली और सुमन का प्रेम भौतिकता के बंधनों से परे है। दोनों जब भी मिलते हैं तो एक-दूसरे को अनूठे माँसाहारी व्यंजनों का स्वाद चखाकर इस प्रेम को परिपूरित महसूस करते हैं। माँसाहार चखने की यह आदत फ़िल्म का अंत आते-आते ऐसा घिनौना रूप ले चुकी होती है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
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फ़िल्म नवम्बर 2019 में आई थी। मुझे नहीं पता कितने लोगों ने देखी। पर हर-एक असमिये को, चाहे वो फ़िल्मों का शौकीन हो या न हो, यह फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए और गर्व करना चाहिए कि इस स्तर की फ़िल्म एक क्षेत्रीय भाषा में बनी है। इससे पहले एक असमिया फ़िल्म की चर्चा शायद ही इतनी कभी हुई होगी।
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बॉलीवुड डाइरेक्टर अनुराग कश्यप ने ख़ुद सोशल मीडिया पर आकर फ़िल्म को प्रमोट किया था और कहा था कि आमिस एक अनोखी फ़िल्म है। वाक़ई में आमिस की कहानी अनोखी है। लेखक-निर्देशक भास्कर हजारिका के इस साहसिक कदम की सराहना करनी चाहिए। फ़िल्म रुपहले पर्दे पर हिट है।


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